जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥ वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥ त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥ भोर https://winbet-casino67901.wikitelevisions.com/6761234/shiv_chaisa_secrets